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जनवरी, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
आया  बसंत   हर तरफ छाया  खुशियों का वातावरण  जाड़े से गर्मी की और  हर तरफ पीला वातावरण  चिड़िया चहकी फूलो  ने भी आखे खोली  सूरज ने  भी गर्मी दे दी  हर जगह पीले फूलो की चादर  बिछी हुई   लगती है  मौसम भी मजे ले रहा है  हर तरफ उजाला हो रहा है  बसंत के मौसम में हर कोई  प्रक्रति में खो जाना चाहता है    हर कोई उल्लासित है  नए मौसम में  बसंत आया और सभी और खुशिया छा गयी    
देश का बड़ा  त्यौहार  है आने वाला  हर कोई खुश है उस   त्यौहार को मनाने के लिए  हर कोई रंग जाता है देश भक्ति के रंग में  ये दिन भी आया है बड़ी मुश्किल से  कितने लोगो ने जान गवाई आज कोई उसका  महत्व  नहीं समझता  सब रंगे है  अंग्रेजी fashion   में  क्या हो गया है आज के नौजवानों  में किसी में नहीं है देश भक्ति की भावना  क्या होगा इस संसार का  सभी लगे है लूटने भारत माता को  इस को नहीं है कोई बचाने वाला  ऐसे ही रह तो वो दिन दूर नहीं  जब हम फिर से गुलाम हो जायेंगे        
मौसम 4 होते है लेकिन भारत में पाचवा भी होता है जो चुनाव का होता है ठण्ड में भी गर्मी का अहसास कराता है हर पार्टी  में उठ्पतक हो रही है जनता  हैरान   है क्या करे क्या न करे जिसे अच्छा समझा वाही गलत निकल गया sabhi ek ही  सिक्के के दो पहलू है सब अपनी रोटी सकते है जनता से उन्हें कोई मतलब नहीं तभी तू पाच साल बाद जनता याद आती  है क्या करे जनता  भी हमेशा  ही ठगी  जताई  है और जनता जब  ठग  जाती  है तो उन्हें लगता है की हमने गलत लोगो को चुन लिया सबसे अच्छी  बात तो ये होती है जो पढ़े लिखे लोग है वो तो वोट डालते  ही  नहीं और बहस करते है ये पार्टी अच्छी है या नहीं क्या मतलब है इसका यही  न की बहस कर लो की ये पार्टी अच्छी नहीं है  वो कुछ करेंगी नहीं क्या होगा बहस का उससे कोई हाल तो निकलता  नहीं बात न करके काम  करे तो जायदा अच्छा होगा                       
बेरोजगारी का आलम  है सारे जगह हो रहा है लूट पाट हिंसा सारे देश में यही हाल है लोगो के पास पैसे नहीं है पर रहना तो  शान से ही है घूमना है  दोस्तों में शान दिखानी है क्या होगा आज की पीढ़ी का सब भटक रहे है कोई राह दिखने वाला नहीं है भटकते  हुए नौजवानों  को कौन  राह दिखाए   न नौकरी   है  और न ही कोई रोकने  वाला माँ बाप भी बेचारे क्या करे पढ़ा दिया काबिल बना दिया आब वो क्या करे बच्चे माँ बाप से झूट बोलकर लूट रहे है सारी दुनिया को क्या यही है देश का भविष्य       
बज गयी चुनाव की घंटी सब नेता लुभाने लगे जनता को क्या होगा परिणाम ये कोई नहीं जानता पर सभी लगे है जानता को अपनी और  लुभाने में जनता भी जानती है इनके वायदे फिर भी आ जाती है इनके वायदों में जनता का न रखते  ये ख्याल वो तो अपनी जेब सिलाते जनता रोये या मरे उन्हें कोई ख्याल नहीं वो सेकते  अपनी राजनीती की रोटिया कोई पार्टी हो या या कोई नेता सब एक ही तरह है ऐसा मुखिया हो तो क्या कहना क्या करे जनता और क्या करे नेता        
नया साल आने को है पुराना साल जाने को है कैसी विचित्र बात है की पुराने के जाने का गम मनाये नए साल के आने की ख़ुशी पुराने साल के जाने का दरर्द है क्योकि  उससे  जुड़ी  बहुत  यादे है नए  साल की ख़ुशी इस लिए  है नया साल बहुत सारी खुशिया लाने  वाला है तो नए साल का करे स्वागत नया साल लाये खुशियों की सौगात पुराने का दुःख तो रहेगा ही क्योकि यही नियम है जो आता है उसे जाना होता है