दर्द न जाने कोय
आखे नम हर तरफ तभाही का मंजर सब बिछड़े और समा गए काल के हाथो में अपनों का दर्द सहा नहीं जाता पर भगवान की मर्जी के आगे रहा नहीं जाता आओ हाथ बढ़ाये रोतो को हँसाये बिछड़ो को मिलाये और ले संकल्प न करेंगे प्रक्रति से छेड़ छाड़ नहीं तो फिर एक बदल फ़टेगा और कितनो को और ले जायेगा जायेगा अपने संग खुद ही दोषी है पर खुद का दोष दिखता नहीं इस काल के आगे अपना बस चलता नहीं मेरी यही गुजारिश है दोस्तों इस दर्द को समझो और बढ़ो आगे दो सहारा उनको जिनका कोई नहीं इस जहा में हम किसी के आसू पोछ पाए तो समझो जीवन हुआ सार्थक हमारा दोस्तों