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क्यों कुर्बान होती है नारी

संस्कारो की भेट चढ़ती है नारी खुशियों की दुकान की चाभी है नारी राष्ट्र का सम्मान  है नारी फिर नारी होती है कुर्बान आचल में समेटे है परिवारों की खुशिया फिर भी सहती है सबकी बाते लोगो को ताने भी सहती है नारी फूल जैसी होती है नारी घर का अभियान होती है नारी मीठी जुबान होती है नारी सर्जन की जननी है नारी पर सभी का पहचान होती है नारी गरिमा का नाम है नारी फिर क्यों कदम कदम पर होती है कुर्बान नारी तपस्या त्याग की पहचान है नारी फिर भी सहती है नारी अपमान और जिल्लत सहती है नारी तभी वो बर्दाशत करती है हर बात को समझो न नारी को खिलौना अपनी पर आ जाये तो दुर्गा है नारी उसको पास होती है उम्मीद की एक दुनिया आचल फेलाए तो ठंडी बयार है नारी समझो न उसको  दीन  हीन  शक्ति का अवतार है नारी फिर क्यों कुर्बान होती है नारी

गुरु की महिमा

गुरु ने हमको सिखाया सही राह पर चलना है, गुरुवर ने दिया है ज्ञान परोपकार,भाईचारा,मानवता, का, जो राह हमें दिखायी वही हम ओरो को दिखाये सच्चाई और सहानभूति को आगे हम और बढ़ाये गुरु की महिमा को कोई न समझ पाया कठिन डगर हो या काटो वाली उस पर चलना सिखाया जीवन के हर मोड़ पर गुरु  के आदर्श जरुरी है, न हो गुरु  जीवन में तो जीवन अँधियारा है माना है जग ने भगवान  से पहले गुरु नाम तुम्हारा है, जो राह दिखाई तुमने उस पर चलते  जाना है, चाहे हो काटो का सफ़र हसकर बढ़ते जाना है हे गुरु तुम्हे शत शत नमन   

मर्त्य देश के निवासी

हम जिस देश में रहते है वो मर्त्य हो चुका  है सब जिन्दा लाश की तरह जी रहे है अपराध बढ़ता जा रहा  है कोई बचाने  वाला नहीं है हर कोई ढूँढ रहा  है कोई बचने आ जाये पर मरे हुए देश में कौन  आएगा हिंसा  का है बोलबाला राजा ही नहीं अच्छी  है तो प्रजा का क्या होगा भगवान का नाम लेने वाले ही माँ बहन की इज्जत लूट रहे है क्या होगा ऐसे देश का रखवाला ही लूट रहा  है कौन बचेयेगा हम कैसे देश के निवासी है ये सोचना होगा  

मानवता खो गयी

मानवता खो गयी यहाँ हर कोई है स्वार्थ में डूबा पैसे की चकाचोंध में क्या बच्चा क्या बूढा हर कोई लिप्त है माया में जनता पिस रही है महगाई  से ऐश कर रहे है नेता अमीर अमीर हो रहे है गरीब और गरीब कोई नहीं पूछता किसी से तुम क्यों उदास हो क्या हुआ तुम्हे मानवता के नाम पर सब शून्य किसी के मरने जीने से किसी को नहीं फर्क पड़ता दुनिया है बढती रहेगी क्या होगा ऐसे में न कोई त्यौहार पर किसी से मिलता है मानवता का अंत हो रहा  है यही कलयुग है क्या कहे इसका न कोई अंत है न शुरुआत